मुंबई। भारतीय सिनेमा कै 100 गौरवशाली साल पूरे हो रहे हैं। इन 100 सालों में जैसे सिनेमा हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। अब मनोरंजन की कल्पना बिना फिल्मों के नहीं की जा सकती। पांच किश्तों में पढ़िए हिंदी सिनेमा का खूबसूरत सफरनामा।
अमिताभ की पहली हिट फिल्म
वर्ष 1973 में प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर की अभूतपूर्व सफलता ने अमिताभ को उनकी पहली सुपरहिट फिल्म का दीदार कराया। इसी साल शो मैन राजकपूर की टीएनएज प्रेमकथा पर बनी बॉबी आई। साल 1973 में ही आमिर खान ने बाल कलाकार के रूप में यादों की बारात से अभिनय जीवन की शुरूआत की। वहीं दाग से किंग ऑफ रोमांस यश चोपड़ा निर्देशक से निर्माता भी बन गए।
संजीव कुमार के नौ किरदार और शबाना को नेशनल अवॉर्ड
साल 1974 में नया दिन नई रात में संजीव कुमार ने नौ अलग-अलग किरदार निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया। इसी साल रजनीगंधा से गोलमाल करने वाले अमोल पालेकर, जरीना बहाव, देश परदेस से टीना मुनीम, कुंआरा बाप से राजेश रौशन ने संगीतकार, अंकुर से शबाना आजमी और इसी फिल्म से श्याम बेनेगल ने निर्देशक के रूप मे शुरूआत की। शबाना को इस फिल्म के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
जब आई ‘शोले’ की ‘आंधी’ और बहा भक्ति रस!
वर्ष 1975 में भारतीय सिनेमा जगत के इतिहास की महान शाहकार शोले रिलीज हुई। गब्बर सिंह की दहाड़, जयशवीरू की दोस्ती, हेमा मालिनी की चुलबुली अदा, संजीव कुमार का संजीदा अभिनय, पंचम दा के महबूबा महबूबा जैसे फड़कते संगीत ने फिल्म को सदा के लिये अमर बना दिया। शोले मुंबई के मिनर्वा टॉकीज मे लगातार पांच साल दिखाई गयी थी। तीन करोड़ के बजट मे बनी पहली 70 एमएम फिल्म ने 15 करोड़ रूपये का शानदार व्यापार किया। इसी वर्ष डायमंड जुबली मनाने वाली ब्लॉकबस्टर धार्मिक फिल्म जय संतोषी मां और संजीव कुमार-सुचित्रा सेन की विवादस्पद फिल्म आंधी प्रदर्शित हुयी।
अफगानिस्तान में शूट हुई पहली फिल्म
साल 1975 में दक्षिण भारतीय फिल्मों के महानायक रजनीकांत ने तमिल फिल्म अपूर्वा रागरंगल से, रवि चोपड़ा ने जमीर से निर्देशक, वहीं नसीरउदीन शाह ने निशांत, स्मिता पटिल ने चरणदास चोर से अभिनय के क्षेत्र मे कदम रखा। फिरोज खान धर्मत्मा की शूटिंग के लिये अफगानिस्तान के खूबसरत लोंकेशनो पर गए। इससे पहले भारत की किसी भी फिल्म का वहां फिल्मांकन नहीं किया गया था।
मिथुन को मिला पहली फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड
वर्ष 1976 में राजकुमार कोहली ने मल्टीस्टारर फिल्म नागिन का निर्माण किया। इसी साल कालीचरण से दूसरे शो मैन सुभाष घई निर्देशक, श्रीदेवी ने तमिल फिल्म मुंदरू मुदिची, घासीराम कोतवाल से ओमपुरी, मृगया से डिस्को डांसर मिथुन चक्रवर्ती ने अभिनय जीवन का आगाज किया। मृगया के लिये मिथुन को र्सवश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। अमिताभ-रेखा की पहली फिल्म दो अंजाने इसी साल प्रदर्शित हुयी।
सत्यजीत रे की पहली हिंदी फिल्म
वर्ष 1977 में मनमोहन देसाई ने एमकेडी बैनर की स्थापना कर अमर अकबर ऐंथोनी का निर्माण किया। अनु मल्लिक ने हंटरवाली से बतौर संगीतकार, दीप्ति नवल ने जालियावाला बाग से अपनी शुरूआत की वहीं सत्यजीत रे अपनी पहली हिंदी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी का निर्माण किया। इसी वर्ष पहली भोजपुरी कलर फिल्म और पहली सिल्वर जुबली फिल्म दंगल प्रदर्शित हुई।
साउथ सुपरस्टार्स का उदय
वर्ष 1978 में राज कपूर ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम का निर्माण किया हालांकि कालजायी मानी जाने वाली यह फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह नकार दी गयी थी। वर्ष 1979 मे तेलगु फिल्मों के महानायक चिरंजीवी, जया प्रदा, अलका याज्ञनिक और अनिल कपूर ने शुरूआत की। वर्ष 1980 में मलयालम फिल्मों के महानायक मोहन लाल ने मंजिल विरिजा पोकाल से अभिनय यात्रा शुरू की।
जब उदित नारायण ने गाया रफी के साथ गाना
वर्ष 1980 में उदित नारायण ने उन्नीस बीस से पार्श्वगायक के रुप में अपने करियर की शुरूआत की। दिलचस्प बात है कि फिल्म उन्नीस बीस में उन्हें अपने आदर्श मोहम्मद रफी के साथ गाने का मौका मिला। इसी वर्ष गोविन्द निहलानी ने आक्रोश से फिल्म निर्माण के क्षेत्र मे कदम रखा।
मल्टीस्टारर फिल्मों का आया जमाना
1981 में मल्टीस्टारर फिल्म क्रांति रिलीज हुई जिसमें दिलीप कुमार, मनोज कुमार, शशि कपूर, हेमा मालिनी, परवीन बाबी और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे भारीभरकम स्टार कास्ट थी। इसी साल अमिताभ बच्चन-जीनत अमान स्टारर फिल्म लावारिस भी रिलीज हुई। इस साल फिल्म एक दूजे के लिए में रति अग्निहोत्री पहली बार हिंदी फिल्म में नजर आईं। एक और मल्टीस्टारर फिल्म नसीब के अलावा अमिताभ की सुपरहिट फिल्में याराना और कालिया भी इसी साल रिलीज हुईं। फिल्म रॉकी से संजय दत्त ने बॉलीवुड में एंट्री की।
महात्मा गांधी का साल
साल 1982 में गुलजार के डायरेक्शन में बनी फिल्म अंगूर में जुड़वा भाईयों के दो जोड़ों की कहनी दिखाई गई जिसमें संजीव कुमार लीड रोल में थे। इस साल संजय की विधाता, मिथुन की सुपरहिट फिल्म डिस्को डांसर, अमिताभ की नमक हलाल, राज बब्बर-सलमा आगा की निकाह, शबाना आजमी की अर्थ जैसी बड़ी फिल्में रिलीज हुईं। इसी साल मल्टीस्टारर फिल्म राजपूत भी रिलीज हुई जिसमें धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, हेमा मालिनि, टीना मुनीम लीड रोल में थे। इसी साल हॉलीवुड और बॉलीवुड के सहयोग से बनी बेन किंग्सले की फिल्म गांधी भी रिलीज हुई।
आ गया बॉलीवुड का ढाई किलो का हाथ
1983 में सनी देओल जैसे सितारों की एंट्री हुई। सनी की बेताब सुरपहिट साबित हुई। श्रीदेवी-जितेंद्र स्टारर फिल्म हिम्मतवाला भी इसी साल रिलीज हुई जिसका हाल ही में साजिद खान ने रिमेक बनाया था। इसी साल रिलीज हुई श्रीदेवी और कमल हसल स्टारर फिल्म सदमा श्रीदेवी के करियर में मील का पत्थर साबित हुई और उन्हें एक अदाकारा के रुप में पहचान मिली। जैकी श्रॉफ की भी फिल्म हीरो से इस साल बॉलीवुड में एंट्री हुई। अमिताभ की कुली भी 1983 की ब्लॉकबस्टर फिल्मों में शामिल थी।
चला जितेंद्र-श्रीदेवी का जादू
जितेंद्र और श्रीदेवी की जोड़ी उस दौर में काफी हिट हुई। 1984 में आई इनकी फिल्म तोहफा भी कामयाब रही और इनकी फिल्म मकसद, अक्लमंद भी हिट हुई। इस साल अनुपम खेर फिल्म सारांश में नजर आए। उन्होंने 23 साल की उम्र में 60 साल के बुजर्ग का किरदार निभाया जिसे क्रिटिक्स के साथ दर्शकों ने भी पंसद किया।
मंदाकिनी का हिट हॉट सीन
1985 में राजकूपर राम तेरी गंगा मैली लेकर आए जिसमें फिल्म की लीड हीरोइन मंदाकिनी ने झरने में नहाते हुए कंट्रोवर्शियल सीन दिया। इस सीन की वजह से काफी विवाद हुआ लेकिन ये फिल्म बॉक्सऑफिस पर हिट रही। इस साल रिलीज हुई फिल्म प्यार झुकता नहीं, मर्द, सागर, मेरी जंग, अर्जुन ने भी अच्छा बिजनेस किया।
‘ऐ वतन तेरे लिए....’
1986 में सुभाष घई की फिल्म कर्मा को जबरदस्त कामयाबी मिली। फिल्म में दिलीप कुमार, जैकी श्रॉफ, श्रीदेवी, अनिल कपूर लीड रोल में थे। फिल्म का गाना ऐ वतन तेरे लिए आज भी बेहतरीन देशभक्ति गानों में से एक माना जाता है। इस साल श्रीदेवी की नागिन भी हिट रही जिसका बाद में सीक्वेल बनाया गया।
जब अनिल कपूर गायब हो गए
1987 में शेखर कपूर एक अलग फिल्म मि. इंडिया लेकर आए जिसमें श्रीदेवी और अनिल कपूर लीड रोल में थे। 1987 और 1988 में कोई अवॉर्ड सेरेमनी नहीं हुई थी लेकिन हाल ही में श्रीदेवी को मि. इंडिया और नागिन में काम करने के लिए विशेष फिल्मफेयर पुरुस्कार दिया गया। 2012 में बोनी कपूर ने मि. इंडिया के सीक्वेल की घोषणा की थी।
आमिर की धमाकेदार एंट्री
1988 में आमिर खान और जूही चावला स्टारर फिल्म कयामत से कयामत तक कमाल कर दिया। फिल्म में आमिर-जूही की जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया। इस लव स्टोरी ने इस साल 25 साल पूरे कर लिए हैं। अपनी पहली ही फिल्म से आमिर सुपरस्टार बन गए। इस साल रिलीज हुईं अनिल कपूर की तेजाब और अमिताभ की शहंशाह भी खास रहीं।
बॉलीवुड को मिला सुपरस्टार सलमान
1981 ने दिया बॉलीवुड को एक और सुपरस्टार। इस साल रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म मैंने प्यार किया। सलमान की ये फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई। इस साल रिलीज हुई फिल्म चांदनी, त्रिदेव, रामलखन, चालबाज भी हिट रहीं। फिल्म परिंदा में अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित के बोल्ड सीन काफी चर्चा में रहे।
अमिताभ का घटता जादू
साल 1990 में भी कई सुपरहिट फिल्में रिलीज हुईं। इस साल आमिर की दिल, सनी की घायल, भट्ट कैंप की आशिकी जैसी फिल्मों ने कमाल कर दिया। सनी ने घायल के लिए बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर जीता तो आशिकी का म्यूजिक सुपरहिट रहा। इस दौर में अमिताभ का जादू कम होने लगा था। इस साल रिलीज हुई उनकी फिल्में आज का अर्जुन और अग्निपथ ने ठीक-ठाक बिजनेस किया।
32 साल बाद दिलीप-राजकुमार आए साथ
वर्ष 199। में प्रदर्शित सौदागर से दिलीप कुमार और राजकुमार का 32 साल बाद आमना सामना हुआ। इस फिल्म में राजकुमार के बोले जबरदस्त संवाद “दुनिया जानती है कि राजेश्वर सिंह जब दोस्ती निभाता है तो अफसाने बन जाते है, मगर दुश्मनी करता है तो इतिहास लिखे जाते है” आज भी सिने प्रेमियों के दिमाग मे गूजंता रहता है ।इसी फिल्म से मनीषा कोईराला और विवेक मुशरान इलू इलू करते नजर आए। वर्ष 199। में अमिताभ किमी काटकर के साथ हम में जुम्मा चुम्मा करते नजर आये। इस साल बॉलीवुड को फूल और कांटे से अजय देवगन के रुप में एक और स्टार मिला। साल 199। में ही खिलाड़ी कुमार अक्षय ने फिल्मों में एंट्री की।
किंगखान और रहमान का आगाज, रे को ऑस्कर
साल 1992 में राजकंवर निर्देशित पहली फिल्म दीवाना से शाहरूख ने आगाज किया तो भारतीय सिनेमा ने उन्हें इतना प्यार किया कि वह बॉलीवुड के किंग खान बन गये। इसी साल छोटे नवाब सैफ अली खान ने परपंरा से, सुनील शेट्टी ने बलवान से अपनी शुरूआत की। इसी साल ए.आर.रहमान ने रोजा से अपनी संगीतमय यात्रा शुरू की। इसी साल भारतीय सिनेमा के एक स्वर्णिम अध्याय उस समय जुड़ गाया जब महान फिल्मकार सत्यजीत रे को आस्कर सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्ष 1992 में दिव्या भारती और काजोल ने अपने करियर की शुरुआत की। बेटा इस वर्ष की सबसे कामयाब फिल्म थी।
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नई दिल्ली। चार दशक तक बॉलीवुड के लिए इंटीमेट सीन या सेक्स सीन का मतलब था कैमेरे के सामने दो फूलों का टकराना या फिर कैमरे का अलाव में जलती लकड़ी के ढेर पर घूमते हुए फोकस करना। सेंसरबोर्ड से डरे हुए फिल्मकार वासना को पर्दे पर प्रतीकों के जरिए पेश करते रहे। लेकिन सिनेमा के सौ सालों के इतिहास में हमेशा ही ऐसा नहीं हुआ। 1930 में भी अभिनेत्रियां उतनी ही बोल्ड थीं जितनी की आज, शायद आज से भी ज्यादा।
शुरु से ही बोल्ड रहा बॉलीवुड
बड़ी दिलचस्प बात है कि बहुत कम लोग जानते हैं कि बॉलीवुड अपने बचपन में सबसे ज्यादा बोल्ड था। 1920-30 के शरुआती दौर में किस(चुंबन) बड़ी ही आम बात थी। 1950 के दशक में ये बोल्डनेस गायब हो गई और इसके बाद 80 के दशक के आखिर में फिल्मकारों ने फिर से सेंसर बोर्ड की रुढ़िवादी सोच को चुनौती देना शुरु किया।
मूक फिल्मों के दौर की बोल्ड हीरोइनें
अंग्रेजी सिनेमा के प्रभाव और विदेशी प्रोडक्शन हाउस की मदद से बनने के कारण शुरुआती फिल्मों में सेक्स और किसिंग सीन्स की भरमार होती थी। 60-70 के दशक की हीरोइनों की तरह 20-30 के दशक की हीरोइनें पर्दे पर इंटीमेट होने में शर्माती नहीं थीं। देविका रानी और उनके डायरेक्टर पति की ने फिल्म ‘कर्मा’ में करीब चार मिनिट लंबा किस सीन दिया था। लेकिन वास्तव में सीता देवी वो पहली अदाकारा थीं जिन्होंने सिल्वर स्क्रिन पर चुंबन दृश्य दिया। ये किस था 1929 की फिल्म ‘ए थ्रो ऑफ डाइस’ में जो महाभारत पर आधारित थी।
उस जमाने की एक और मशहूर अदाकारा जुबैदा ने 1932 में आई फिल्म ‘जरीना’ में तंग व छोटे कपड़ो और किसिंग सीन से सनसनी फैला दी थी। यहां तक की ललीता पवार, जो बाद में बॉ़लीवुड की मशहूर वैंप बनीं, ने भी फिल्म ‘पति भक्ति’ में किसिंग सीन दिया था। इन अभिनेत्रियों ने रुढीवादी और पुरुषशासित माने जाने वाले बॉलीवुड में खुद के लिए एक अलग जगह बनाई।
किसिंग सीन हो गया बैन
चालीस के दशक के आखिर तक हिंदी फिल्मों में आजादी से बोल्ड विषय दिखाए जाते रहे। लेकिन आजादी के बाद फिल्म एडवायजरी बोर्ड की स्थापना हुई और फिल्म इंडस्ट्री और ज्यादा रूढ़ीवादी हो गई। आजादी मिलने के साथ ही बोर्ड चाहता था कि फिल्मकार फिल्मों में भारत की शालीनता-पवित्रता दिखाएं। सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 बनने के बाद पर्दे से बोल्डनेस गायब होने लगी। बोर्ड ने चुंबन को अशोभनीय बताते हुए फिल्मों में किसिंग सीन पर रोक लगा दी।
जब इशारों से चलाना पड़ा काम
सेंसर बोर्ड की सख्ती के बाद फिल्मकारों ने पर्दे पर रोमांस दिखाने के नए तरीके ईजाद कर लिए। जब पर्दे पर किसिंग सीन और सेक्स सीन बैन कर दिए गए तो फिल्मकारों ने सांकेतिक तरीकों से इन्हें दिखाना शुरु किया। हाथ पकड़ना और गालों को सहलाना तो पर्दे पर दिखाया जा सकता था तो फिल्मकारों ने दो फूलों को आपस में टकराते हुए सांकेतिक रुप से किस या फिर कपल्स के बीच शारीरिक संबंध दिखाना शुरु किया। 50-60 के दशक में किसिंग की जगह पेड़ों के इर्द-गिर्द दौड़ने ने ले ली। फिल्मकार वासना को दिखाने के लिए आग का इस्तेमाल करने लगे। फिल्म ‘आराधना’ का गाना ‘रुप तेरा मस्ताना’ में भी लव मेकिंग सीन दिखाने के लिए यही तरीका इस्तेमाल किया गया।
राजकपूर लेकर आए बोल्डनेस
70 के दशक में फिल्मकारों ने बदलते समाज के अनुसार बदलने की ठानी। डायरेक्टर राजकपूर ने अपनी फिल्मों में सेक्स दिखाने से कभी परहेज नहीं किया। वो अपनी हीरोइन को स्विम सूट या बदन से चिपकी भीगी साड़ी में दिखाकर दर्शकों को रोमांचित करते रहते थे।
मंदाकिनी की भीगी साड़ी
राजकूपर 1973 की अपनी फिल्म ‘बॉबी’ से पर्दे पर किसिंग का ट्रेंड वापस लाए। फिल्म में ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया ने किसिंग सीन दिया। राजकपूर की ही फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में शशि कपूर और जीनत अमान भी किस करते नजर आए। फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ में तो उन्होंने मंदाकिनी को एक झीनी सी साड़ी में झरने के नीचे खड़ा कर दिया। दृश्य में मंदाकिनी के स्तन साफ नजर आ रहे थे। इस दृश्य ने तब खूब सुर्खियां बटोरीं।
डिंपल बनीं सेक्स सिंबल
इसके बाद तो जैसे फिल्मकारों को फिर से आजादी मिल गई। डिंपल कपाड़िया तो मानो सेक्स सिंबल बन गई जिन्होंने फिल्म सागर में ऋषि कपूर को किस किया और फिल्म जांबाज में अनिल कपूर के साथ उनके हॉट सीन्स की काफी चर्चा हुई। माधुरी दीक्षित ने भी दयावान में विनोद खन्ना के साथ लंबा किसिंग सीन दिया। यहां तक कि ८० के दशक में आमिर- जूही जैसे न्यूकमर भी कयामत से कयामत में किस करते नजर आए।
मल्लिका शेरावत के 17 किस
90 के दशक की शुरुआत से ही फिल्मों में किसिंग सीन होना आम बात हो गई। लेकिन फिल्म ‘राजा हिंदुस्तानी’ में आमिर और करिश्मा कपूर का करीब 1 मिनिट लंबा वो किसिंग सीन था जिसने हलचल मचा दी। अपने पूर्वजों के नक्शे कदम पर चलते हुए नए फिल्मकार बोल्डनेस को नए आयामों पर ले गए। 2003 में आई गोविंद मेनन की फिल्म ‘ख्वाहिश’ में मल्लिका शेरावत और हिमांशु मलिक ने 17 चुंबन दृश्य दिए। फिल्म भले ही फ्लॉप रही पर इसे पब्लिसिटी खूब मिली। बाद में कई फिल्मकारों ने वासना को अपनी फिल्मों में इस्तेमाल किया। 2004 में फिल्म ‘जूली’ में नजर आईं नेहा धूपिया ने तो यहां तक दावा किया कि बॉलीवुड में सिर्फ सेक्स बिकता है।
‘मर्डर’ से मची हलचल
लेकिन अनुराग बसु की फिल्म ‘मर्डर’ ने बॉलीवुड में एक बार फिर हलचल मचा दी। इमरान हाशमी और मल्लिका शेरावत अपने सेक्सुअल कैमिस्ट्री के कारण रातोंरात स्टार बन गए। इनके अलावा ‘धूम 2’ में ह्रितिक रोशन और ऐश्वर्या, ‘जब वी मेट’ में शाहिद और करीना और ‘इश्किया’ में अरशद और विद्या बालन के किस की भी काफी चर्चा हुई।
और अब तो बॉलीवुड फिल्मों में किसिंग सीन और बोल्ड सीन होना काफी आम हो गया है और छोटी-मोटी फिल्मों से लेकर बड़ी फिल्मों तक, सी ग्रेड एक्टर्स से लेकर सुपरस्टार्स तक किसी को भी किस और बोल्ड सीन से परहेज नहीं है।
नई दिल्ली। बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा कि अपने देश की पहली महिला संगीतकार कौन थीं? सिनेमा के एक सौ साल पूरे होने के अवसर पर इतने समारोह हुए। लेकिन इस महिला संगीतकार को याद भी नहीं किया गया। दिल्ली दूरदर्शन के पूर्व निदेशक और संगीत विशेषज्ञ शरद दत्त ने सरस्वती देवी नामक इस पहली महिला संगीतकार की तरफ लोगों का ध्यान दिलाया है। यह साल सरस्वती देवी के जन्मशती का साल भी है।
होमीजी सिस्टर्स का ऑर्केस्ट्रा
दत्त ने बताया कि पारसी परिवार में 1912 में मुंबई में जन्मीं सरस्वती देवी का मूल नाम खुर्शीद मिनोचर होमजी था। पारसी परिवार में उनका इतना विरोध हुआ कि हिमांशु राय ने उनका नाम बदलकर सरस्वती देवी रख दिया था। उन्होंने 1936 में पहली बार जीवन नैया फिल्म में संगीत दिया था। सरस्वती देवी ने चंद्रप्रभा और अपनी दो बहनों के साथ मिलकर आर्केस्टा ग्रुप भी बनाया था और वह होमीजी सिस्टर्स के नाम से जानी जाती थीं।
20 फिल्मो में दिया संगीत
दत्त का कहना है कि वैसे तो नरगिस की मां जेद्दन बाई ने भी पहली बार बतौर महिला संगीतकार के रुप में फिल्मों में संगीत दिया था। पर बाद में उन्होंने यह काम छोड़ दिया। सरस्वती देवी तो बकायदा पेशेवर संगीतकार के रुप में बनी रहीं। सरस्वती देवी ने करीब 20 फिल्मो में संगीत दिया था। 10 अगस्त 1980 को सरस्वती देवी का निधन हो गया था। उन्हें एक तरह से विस्मृत कर दिया गया। वह और उनकी बहन चंद्रप्रभा भी अविवाहित ही रहीं। चंद्रप्रभा ने तो फिल्मों में भी काम किया।
संभाली बॉम्बे टॉकीज के म्यूजिक की कमान
लखनऊ के मारिस कालेज से संगीत का विधिवत प्रशिक्षण लेने के बाद सरस्वती देवी ने 1927 में इंडियन ब्राडकास्टिंग सर्विस जो अब ऑल इंडिया रेडियो कहलाता है से संगीत के कुछ कार्यक्रम देना शुरु किया था। वह आर्गन बजाती थीं और उनकी बहनें सितार, दिलरुब और पैडोलिग्न बजाती थीं। बाम्बे टॉकीज के हिमांशु राय ने सरस्वती देवी और उनकी बहन चंद्रप्रभा को अपनी कंपनी के संगीत विभाग की कमान संभालने को कहा।
झेलना पड़ा भारी विरोध
जब बाम्बे टॉकीज की पहली फिल्म जवानी की हवा का प्रदर्शन हुआ तो पारसी पंडाल कौशिक ने जोरदार विरोध किया और इम्पीरियल सिनेमा के सामने प्रदर्शन भी हुए और जुलूस भी निकले। इस फिल्म के कई शो पुलिस की निगरानी में हुए। इससे सरस्वती देवी का सिक्का जम गया। सरस्वती देवी ने अछूत कन्या में भी संगीत दिया था। इसके अलावा बंधन, नया संसार, प्रार्थना, भक्त रैदास, पृथ्वी वल्लभ, खानदानी, नकली हीरा, उषा हरण जैसी फिल्मों में संगीत दिए।
पद्म विभूषण
और भारत रत्न से सम्मानित पंडित रविशंकर के निधन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गुजरात
के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, जावेद अख्तर समेत कई दूसरे जानी मानी शख्सियत ने शोक
जताया है। जावेद अख्तर ने पंडित जी के निधन पर कहा कि देश का संगीत अनाथ हो गया।
पद्म विभूषण
और भारत रत्न से सम्मानित पंडित रविशकर के निधन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गुजरात
के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, जावेद अख्तर समेत कई दूसरे जानी मानी शख्सियत ने शोक
जताया है।
माइक्रोब्लॉगिंग
साइट ट्विटर पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से लिखे संदेश में कहा गया है,
पंडित रवि शकर के निधन से एक युग का अंत हो गया है। मेरे साथ-साथ पूरा देश उनकी प्रतिभा,
कला तथा विनम्रता को श्रद्धाजलि देता है। पंडित रवि शकर राष्ट्रीय संपदा और भारत की
सास्कृतिक विरासत के वैश्विक राजदूत थे।
ट्विटर पर शोक
संवेदना जताने वालों का तांता लग गया है। फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने कहा है कि उनका
संगीत हमारे आत्मा में बसता है। उनकी मुस्कुराहट भी संगीत लगती थी। भगवान उनकी आत्मा
को शाति दे।
पंडित राजन
मिश्र ने पंडित रविशकर के निधन को बहुत बड़ी क्षति बताते हुए कहा कि उनके न रहने से
शास्त्रीय संगीत को बहुत बड़ा धक्का लगा है।
बिरजू महाराज
ने कहा कि पंडित जी के निधन की खबर पर यकीन कर पाना बेहद मुश्किल है।
मशहूर गजल लेखक
आलोक श्रीवास्तव ने उनके निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि उन्होंने ही पहली बार पूरी
दुनिया को बताया कि भारत का संगीत पूरी दुनिया के साथ कदमताल कर सकता है।
-गीतकार प्रसून
जोशी ने पंडित रविशकर के निधन पर दुख जताते हुए कहा कि पंडित जी ने संगीत को जो दिया
है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
-गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंडित रविशकर की मौत पर दुख जताते हुए उनकी आत्मा की शाति
के लिए प्रार्थना किया।
-श्रीश्री रविशकर
ने पंडित रविशकर के बारे में कहा है कि उन्होंने भारतीय संगीत को दुनिया में एक अहम
मुकाम दिलवाया।
-रविशंकर भारतीय
शास्त्रीय संगीत का एक ऐसा चेहरा जिन्हें विश्व संगीत का गॉडफादर कहा जाता था। पंडित
रविशकर देश के उन साधकों में से थे, जो देश के बाहर काफी लोकप्रिय हैं। वे लंबे समय
तक तबला उस्ताद अल्ला रक्खा खां, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान के
साथ जुड़े रहे।
-वायलिन वादक
येहुदी मेनुहिन और फिल्मकार सत्यजीत रे के साथ उनके जुड़ाव ने उनके संगीत सफर को नया
मुकाम प्रदान किया। पंडित रविशकर को उनके संगीत सफर के लिए 1999 में भारत के सर्वोच्च
नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था। उन्हें 14 मानद डॉक्ट्रेट, पद्म विभूषण,
मेगसायसाय पुरस्कार, तीन ग्रेमी अवॉर्ड और 1982 में गांधी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ
मौलिक संगीत के लिए जार्ज फेन्टन के साथ नामाकन मिला था। पंडितजी का जन्म उत्तरप्रदेश
के वाराणसी में हुआ था। उनका परिवार पूर्वी बंगाल के जैस्सोर जिले के नरैल का रहने
वाला था।
प्रसिद्ध सितार
वादक एवं शास्त्रीय गायक शुजात हुसैन खान ने कहा था कि मेरा मानना है इस वक्त सितार
में दो मुख्य विरासत हैं। वर्तमान दौर के साधक उस्ताद विलायत खां साहब और पंडित रविशकर।
पंडित रविशकर
ने पहला कार्यक्रम 10 साल की उम्र में दिया था। भारत में पंडित रविशकर ने पहला कार्यक्रम
1939 में दिया था। देश के बाहर पहला कार्यक्रम उन्होंने 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ
में दिया था और यूरोप में पहला कार्यक्रम 1956 में दिया था।
चंद्रग्रहण
चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति कों कहते हैं जब चंद्रमा पृथ्वीके ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में अवस्थित हों। इस ज्यामितीय प्रतिबंध के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा की रात्रि को घटित हो सकता है। चंद्रग्रहण का प्रकार एवं अवधि चंद्र आसंधियों के सापेक्ष चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करते हैं।
किसी सूर्यग्रहण के विपरीत, जो कि पृथ्वी के एक अपेक्षाकृत छोटे भाग से ही दिख पाता है, चंद्रग्रहण को पृथ्वी के रात्रि पक्ष के किसी भी भाग से देखा जा सकता है। जहाँ चंद्रमा की छाया की लघुता के कारण सूर्यग्रहण किसी भी स्थान से केवल कुछ मिनटों तक ही दिखता है, वहीं चंद्रग्रहण की अवधि कुछ घंटो की होती है। इसके अतिरिक्त चंद्रग्रहण को सूर्यग्रहण के विपरीत आँखों के लिए बिना किसी विशेष सुरक्षा के देखा जा सकता है, क्योंकि चंद्रग्रहण की उज्ज्वलता पूर्ण चंद्र से भी कम होती है।
चन्द्रग्रहण का सरलीकृत चित्र
सूर्य ग्रहण
भौतिक विज्ञान की दृष्टि से जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढ़क जाता है, उसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चाँद पृथ्वी की। कभी-कभी चाँद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है। फिर वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है जिससे धरती पर साया फैल जाता है। इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। यह घटना सदा सर्वदा अमावस्या को ही होती है।
विश्व के सबसे छोटे क़द का व्यक्ति
नन्हे-मुन्नों से भी कम कद के 72 वर्षीय एक नेपाली बुजुर्ग को दुनिया के सबसे छोटे क़द के इंसान हैं.
गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड और चिकित्सकों की एक टीम की जांच में चंद्र बहादुर डांगी का कद 21.5 इंच मापा गया है.
चंद्र बहादुर डांगी ने पत्रकारों से कहा, “मै बहुत खुश हूं. मै नेपाल और दुनिया के अलग अलग देशों को देखना चाहता हूं.”
रविवार को गिनीज़ ने डांगी को दो सर्टीफिकेट दिए, पहला दुनिया के सबसे छोटे पुरूष होने का और दूसरा गिनीज़ के 57 सालों के इतिहास में सबसे छोटे इंसान होने का.
नेपाल की राजधानी काठमांडू से करीब 400 किलोमीटर दूर एक गांव रिमखोली में डांगी अपने परिवार के साथ रहते है. उनके पांच भाई हैं जो सामान्य कद के है.
सेहत दुरूस्त
शनिवार को काठमांडू में गिनीज़ के दल से मिलने से पहले डांगी को कभी चिकित्सक के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ी. उनके परिवार का कहना है कि वो कभी गंभीर रूप से बीमार नहीं हुए.
डांगी से पहले ये खिताब जूनरे बलाविंग के पास था
क्लिनिक में जिन डॉक्टरों ने डांगी को देखा उन्होंने भी उनकी सेहत में कोई खराबी नही पाई. उनके परिवार को याद नहीं है कि डांगी का कद बढ़ना कब रुक गया.
अपने छोटे कद के कारण चंद्र बहादुर डांगी कभी घर से बाहर काम करने नहीं गए. वो बस कभी-कभी घर के काम-काज में हाथ बटां देते है.
डांगी से पहले ये उपाधि फिलीपिस के जूनरे बलाविंग ने हासिल की थी. जूनरे का कद 23.5 इंच था.
शहर से दूर
चंद्र बहादुर डांगी जहां रहते है वो गांव शहर से इतना दूर है कि उनके बारे में जानकारी हाल में ही सामने आई. लकड़ी कटवाने का काम करवाने वाले एक ठेकेदार ने डांगी को देखा और उसके कद के बारे में स्थानीय समाचार चैनलों को जानकारी दी.
डांगी से पहले भी एक नेपाली पुरुष खगेंद्र थापा को विश्व के सबसे छोटे क़द के व्यक्ति होने की उपाधि दी गई थी. लेकिन जूनरे बलाविंग उनसे भी छोटे निकले.
गिनीज़ ने पिछले साल दिसंबर में एक भारतीय लड़की ज्योति आमगे को दुनिया की सबसे छोटी महिला का खिताब दिया था. महज़ 24.7 इंच की ज्योति आमगे अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करके बॉलीवुड अभिनेत्री बनना चाहती हैं.
एक दिवसीय हो या वनडे
क्रिकेट सचिन तेंदुलकर के नाम बहुत सारे रिकॉर्ड हैं. सचिन तेंदुलकर ने वर्ष 1989 में
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना शुरू किया था.
उस समय से अब तक सचिन
ने बल्लेबाज़ी के कई कीर्तिमान तोड़े हैं और कई नए रिकॉर्ड बनाए हैं. वनडे में 200
रनों की पारी हो या फिर टेस्ट में 50 से ज़्यादा शतक, सचिन बल्लेबाज़ी के हर रूप में
सुपरहिट रहे हैं.
आइए नज़र डालते हैं
सचिन के कुछ अहम रिकॉर्ड्स पर.....
टेस्ट क्रिकेट
1. टेस्ट क्रिकेट में
सर्वाधिक रन
2. टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक शतक
3. 15 हज़ार टेस्ट रन बनाने वाले दुनिया के पहले खिलाड़ी
4. एक कैलेंडर ईयर में सबसे ज़्यादा छह बार एक हज़ार या ज़्यादा रन बनाने वाले पहले
खिलाड़ी
5. एक पारी में 150 या उससे ज़्यादा रन सर्वाधिक बार बनाने वाले खिलाड़ी
6. सबसे कम उम्र में टेस्ट शतक लगाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी
7. बीस साल की उम्र से पहले पाँच शतक लगाने वाले पहले खिलाड़ी
8. सर्वाधिक टेस्ट खेलने वाले खिलाड़ी
9. विदेशी ज़मीन पर सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी
10. विदेशी ज़मीन पर सर्वाधिक शतक लगाने वाले खिलाड़ी
11. सचिन उन खिलाड़ियों में शुमार हैं, जिन्होंने टेस्ट खेलने वाले हर देश के ख़िलाफ़
शतक लगाया है.
वनडे
1. वनडे क्रिकेट में
सर्वाधिक रन
2. वनडे क्रिकेट में सर्वाधिक शतक
3. सर्वाधिक वनडे खेलने वाले खिलाड़ी
4. लगातार सबसे ज़्यादा वनडे खेलने वाले खिलाड़ी
5. सर्वाधिक मैदानों पर खेलने वाले खिलाड़ी
6. वनडे में दोहरा शतक लगाने वाले पहले खिलाड़ी
7. एक कैलेंडर ईयर में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी
8. एक कैलेंडर ईयर में सर्वाधिक शतक लगाने वाले खिलाड़ी
9. विश्व कप में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी
10. वनडे में 10 हज़ार रन बनाने वाले पहले खिलाड़ी
11. वनडे में सर्वाधिक मैन ऑफ़ द सिरीज़ का पुरस्कार जीतने वाले खिलाड़
उन्हें ये पुरस्कार 2010 में दिया गया था.
मूंछो की कहानी
राम सिहं जयपुर के एक व्यस्त इलाके में अपने भरे पूरे परिवार
के साथ रहते हैं.
यूं तो आम शर्ट पैंट में देखकर वे किसी भी तरह के रिकार्ड होल्डर
नहीं दिखते लेकिन उनके गले में पतले कपड़े में लिपटी मूंछों की लड़िया उनकी शोहरत की
कहानी बयां करती है.
राम सिंह राजस्थान सरकार के पर्यटन विभाग में काम भी करते हैं
और इस विभाग के ब्रैंड एमबैस्डर भी हैं.
उनके घर की हर दीवार उनकी मूंछो की दास्तां से पटी पड़ी है.
बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ.
"मैं पिछले तीस सालों से मूंछे बढ़ा रहा हूं. जवानी में तो जल्दी जल्दी बढ़ी पर
जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है, इसकी रफ्तार कम हो गई है."
राम सिंह चौहान
‘मैं पिछले तीस सालों से मूंछे बढ़ा रहा हूं. जवानी में तो जल्दी
जल्दी बढ़ी पर जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है, इसकी रफ्तार कम हो गई है.’
राम सिंह चौहान कहते हैं कि उन्हें मूछें बढ़ाने की प्रेरणा
राजस्थान के ही कर्णाभील नामक व्यक्ति से मिली जिनकी मूंछे भी मशहूर थीं.
राम सिंह को इस बात का दुख ज़रूर सालता है कि जवानी के दिनों
में उनकी मूछों को लेकर इज्जत तो बड़ी होती थी लेकिन लड़किया थोड़ा उनसे बच कर ही चलती
थी.
उनकी पत्नी उनके मूंछो से नाराज़ नहीं होती हैं ? राम सिंह हंसते
हुए कहते है कि इसका जवाब उनकी पत्नी से ही लिया जाना चाहिए.
मूंछो का रख-रखाव
आशा चौहान शर्माते हुए कहती है कि शादी के बाद उन्हें बड़ी परेशान
होती थी राम सिंह की मूंछो से.
सबसे ज्यादा परेशानी इस बात से होती थी कि वे तैयार होने में
काफी समय लगाते थे. धोने, सुखाने में बहुत समय लगता था.
लेकिन अब वे मानती हैं कि जब इन मूंछों से राम सिंह का नाम होने
लगा तो इनकी शोहरत से परिवार की शोहरत भी हुई है.
अब आशा को अच्छा लगता है. कहती हैं, मूंछे तो शान है और अब ये
हमारे परिवार का हिस्सा है.
राम सिंह बताते हैं कि हर रोज़ मूंछो को तैयार करने में एक घंटा
लगता है. हर दिन तेल से मालिश और फिर कपड़े में बाधंना.
हर दस दिनों में 14 फुट लंबी मूंछ की धुलाई भी की जाती है. इन
सबमें इनकी पत्नी बहुत सहयोग करती हैं.
राम सिंह को इस बात का अफसोस है कि उनके परिवार में किसी भी
मर्द को मूंछो को शौक नहीं है और अब नए जमाने में मूंछ की पूछ भी नहीं होती.
पर अगर मूंछे राम सिंह चौहान जैसी हों, ठसक लिए, तो पूछ कैसे
न होगी.
कहना होगा मूंछे हों तो राम सिंह चौहान जैसी हों वरना न हों.
मुंबई। धमेंद्र-हेमा की बड़ी बिटिया
ईशा देओल की शादी आज (शुक्रवार) है। वह व्यवसायी भरत तख्तानी की होने जा रही हैं। पापा
धमेंद्र बिटिया की शादी को लेकर काफी भावुक हो गए हैं। धरम जी ने ईशा की शादी को बहुत
खास बताया और कहा कि 29 जून का दिन मेरे लिए बहुत खास है। मेरी छोटी सी ईशा अब अपना
घर बसाने जा रही है। ईशा मेरी जान है। वह मेरे लिए अनमोल है। धरम ने कहा कि ईशा और
भरत की जोड़ी
बेमिसाल है। उन्होंने कहा, दोनों एक साथ बहुत अच्छे लगते हैं। मैं चाहता
हूं कि दोनों का जीवन इसी तरह हंसती-खेलती खुशियों से भरा हो।
धरम को इस बात का मलाल है कि मीडिया
ने ईशा को लेकर उनके प्यार पर सवाल उठाया। दरअसल ईशा की मेंहदी की रस्म में धमेंद्र
और सनी के न पहुंचने की खबरें उड़ी थीं। इसे पारिवारिक विवाद के रूप में देखा जाने
लगा था। लेकिन धरम जी ने कहा है कि यह एकदम बेबुनियाद खबर थी। धमर्ेंद्र ने कहा कि
वे संगीत सेरेमनी में मौजूद थे, लेकिन तबीयत ठीक न होने के कारण कैमरों के सामने आने
से थोड़ा बच रहे थे। हेमा मालिनी ने भी कहा कि धरम जी ईशा को बहुत चाहते हैं और ऐसा
कैसे हो सकता था कि वे उसकी मेंहदी में मौजूद न होते।
धमेंद्र ने कहा कि उनकी तबीयत अब दुरुस्त
हैं। बोले, आजकल तो मीडिया में एक्टर्स को बीमार बताने का ट्रेंड चल पड़ा है। फिल्हाल
तो मैं किसी भी तरह की बामारी को अफोर्ड नहीं कर सकता। मेरी बेटी की शादी जो है। बहरहाल,
शुक्रवार को मुंबई में धरम-हेमा की बिटिया की शादी में पूरे बॉलीवुड के उमड़ने की संभावना
है। संगीत में जो लोग शामिल हुए थे, वे तो आ ही रहे हैं, धरम-हेमा और ईशा ने अपने सभी
फिल्मी दोस्तों को भी न्योता दिया है। यह शादी बॉलीवुड के गलियारों में सुर्खियों में
है और सिने प्रेमियों में भी इस मैरिज को लेकर काफी उत्सुकता है।
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