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Saturday, August 18, 2012

मदनमोहन


Madanmohan
FC
अपने जीवनकाल में सबसे बेहतर संगीत रचना करने और लता मंगेशकर जैसी गायिका से सर्वोत्तम गीत गवाने के बावजूद मदनमोहन को जो लोकप्रियता उस दौर में मिलना थी, वह नहीं मिली। उन्हें उनकी मौत के बाद याद किया गया और उनके महत्व को समझा गया।

संगीत के बेताज बादशाह 
संगीत में मदनमोहन के बारे में संगीतकार खय्याम का कहना है कि वे संगीत के बेताज बादशाह थे। संगीत की‍ जितनी विविधताएँ होती हैं, उन सबका उन्हें गहरा ज्ञान एवं समझ थी। जबकि उन्होंने शास्त्रीय अथवा सुगम संगीत का बाकायदा कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था। मदनमोहन अपनी रचनाओं के जरिये जो श्रोताओं को दे गए, वे अनमोल खजाने के समान है।

सेना छोड़ ग्लैमर वर्ल्ड में 
बॉम्बे टॉक‍िज फिल्म कंपनी के एक निर्दे‍शक रायबहादुर चुन्नीलाल कोहली के वे बेटे थे। चुन्नीलाल ने बाद में फिल्मिस्तान की नींव रखी और नामी फिल्मों के साथ कई सितारे फिल्माकाश को दिए। वे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा ग्लैमर की इस दुनिया में कदम रखे, लेकिन फिल्मी दुनिया का आकर्षण मदनमोहन में इतना जबरदस्त था कि उन्होंने सेना की नौकरी छोड़कर ऑल इंडिया रेडियो (लखनऊ) ज्वॉइन कर लिया। यहाँ काम करते हुए उन्हें न केवल संगीत-राग रागिनियों का ज्ञान मिला, बल्कि देश के शास्त्रीय-सुगम गायक-गायिकाओं, वादक और संगीतकारों के सम्पर्क में आकर उन्होंने बहुत कुछ सीखा। गजल गायिका बेगम अख्तर और बरकतअली साहब का उन पर विशेष प्रभाव हुआ। बाद में फिल्मों में मौका मिलने पर मदनमोहन ने जो बंदिशें रची- ‘मैंने रंग दी आज चुनरिया’, ‘जिया ले गयो जी मोरा सांवरिया’, नैनों में बदरा छाए’ इन पर बरकतअली साहब का प्रभाव सीधे-सीधे देखा जा सकता है।

बेगम अख्तर का प्रभाव 
बेगम अख्तर की गजल गायन का प्रभाव भी मदनमोहन की बंदिशों में सुनने को मिलता है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि मदनमोहन जैसी गजलों की रचना करने में कोई फिल्म संगीतकार सफल नहीं हुआ है। मदनमोहन की कुछ लाजवाब गजलें हैं- ‘उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते’, ‘आज सोचा तो आँसू भर आए’, ‘आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे’, ‘इसी में प्यार की आरजू’ और ‘हम प्यार में जलने वालों को चैन कहाँ, आराम कहाँ’।


भीड़ से अलग चेहरा 
अपने समकालीन संगीतकारों में मदनमोहन भीड़ में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे, लेकिन उन्हें अधिक अवसर नहीं मिले। गीत की रचना और शब्दावली पर उनकी पैनी नजर रहती थी। वे पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ गीतों को सुरबद्ध करते थे। पार्श्व गायकों के प्रति उनके मन में सम्मान होता था और आत्मीयता के साथ उनसे गवाते थे।

मदन भैया 
लताजी को वे सदैव बहन मानते थे और बदले में लताजी उन्हें सारे जीवन मदन भैया पुकारती रही। लताजी ने कहा था ‘दूसरे संगीतकारों ने मुझे गाने (साँग्स) दिए हैं, जबकि मदन भैया ने गाना (संगीत) दिया है।‘

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