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Saturday, August 18, 2012

अमृता सिंह



अमृता सिंह
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1980 के आसपास की बात है, जब फिल्म स्टार अपने बेटों को लांच करने में लगे हुए थे। धर्मेन्द्र अपने बड़े बेटे सनी देओल को अभिनय के अखाड़े में उतारने की तैयारी कर रहे थे और हीरोइन की तलाश की जा रही थी। एक अभिनेत्री को उन्होंने चुन लिया। बाद में पता चला कि वह किसी फिल्म में एक छोटा-सा रोल कर चुकी है। यह बात धरम का दिमाग गरम करने के लिए काफी थी। उन्होंने उसे फिल्म से बाहर निकाल दिया। ‘बेताब’ के लिए अभिनेत्री की तलाश अमृता सिंह पर आकर खत्म हुई। हट्टे-कट्टे सनी के आगे ऊंची-पूरी नायिका का होना जरूरी था जिस पर अमृता खरी उतरी। फिल्म जब रिलीज हुई तो फिल्म समीक्षकों ने अमृता की काफी खिल्ली उड़ाई गई। वे आम हीरोइनों की तरह खूबसूरत और नाजुक नहीं थी। उनमें मर्दानापन झलकता था। लिहाजा उनका नाम ‘मर्द सिंह’ रख दिया गया। लेकिन फिल्म की जबरदस्त सफलता से अमृता की सेहत पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ और उनकी गाड़ी सरपट दौड़ने लगी।

मर्द में मर्द सिंह
जैसा कि बॉलीवुड में अक्सर होता है, किसी कलाकार के खाते में सफल फिल्म आ जाती है तो उसके घर के बाहर निर्माताओं की कतार लग जाती है। अमृता के साथ भी यही हुआ। उस दौरान अमिताभ बच्चन को लेकर मनमोहन देसाई ‘मर्द’ (1985) की प्लानिंग कर रहे थे। ‘बेताब’ की सफलता ने अमृता की ओर उनका ध्यान खींचा और ‘मर्द’ फिल्म अमृता की झोली में आ गिरी। अमिताभ के साथ फिल्म करना हर हीरोइन का सपना होता है इसलिए उम्र के अंतर को भी अमृता ने नजर अंदाज कर दिया। करियर के आरंभ में ही महानायक का साथ मिलने से अमृता कई हीरोइनों की आंख की किरकिरी बन गई और उनकी स्टार वैल्यू में जबरदस्त इजाफा हुआ। अमृता के काम से मनमोहन देसाई काफी खुश हुए और उन्होंने तूफान (1989) में भी अमृता को दोहराया।

बाप-बेटे दोनों के साथ 
साहेब (1985), चमेली की शादी (1986), नाम (1986) जैसी फिल्मों के जरिये अमृता सिंह अपनी चमक बिखेरती रहीं और उस दौर के टॉप हीरो उनके साथ काम करने के लिए उत्सुक रहने लगे। अमृता ने जहां एक ओर युवा नायकों सनी देओल, संजय दत्त, अनिल कपूर के साथ फिल्में की तो दूसरी ओर उम्रदराज हीरो शत्रुघ्न सिन्हा, जीतेन्द्र, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, भी उनके हीरो बने। इस खासियत की वजह से अमृता को कई फिल्में मिलीं। एक वक्त ऐसा भी था जब धर्मेन्द्र और सनी देओल दोनों अलग-अलग फिल्मों में हीरो के रूप में नजर आते थे और बॉक्स ऑफिस पर धर्मेन्द्र की चमक सनी से ज्यादा थी। जब धर्मेन्द्र के हीरो के रूप में रिटायरमेंट की बात चलती तो वे कहते कि अभी तो मैं जवां हूं और सनी की हीरोइनों का मैं भी हीरो बन सकता हूं। उन्होंने अपनी कही बात को सच कर दिखाया। सच्चाई की ताकत (1989) और ‘वीरू दादा’ (1990) में वे अमृता के हीरो बने।

अभिनय का आईना 
नायिका प्रधान फिल्मों का बॉलीवुड में सदैव अकाल रहा है। ऐसे रोल भी ज्यादा लिखे नहीं जाते जिनमें हीरोइन अपनी काबिलियत दिखा सके। अमृता सिंह ने भी कई ऐसी फिल्में की जिनमें उनके हिस्से में कुछ गाने और कुछ सीन आए। सीमित दायरे में रहने के बावजूद उन्होंने कुछ फिल्मों में अपने अभिनय के रंग बिखेरे। साहेब (1985) में वे बबली गर्ल के रूप में नजर आईं। ‘नाम’ (1986) में संजय दत्त और कुमार गौरव जैसे अभिनेताओं के बावजूद उन्होंने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। ‘वारिस’ (1988) में स्मिता पाटिल जैसी सशक्त अभिनेत्री के बावजूद उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। ‘आईना’ (1993) में अमृता ऐसी लड़की के रोल में नजर आईं जो अपने घमंड के कारण अपने प्रेमी को खो देती है। जब उसकी छोटी बहन को उसका प्रेमी पसंद आ जाता है तो वह ईर्ष्या की आग में जल जाती है। इस भूमिका को अमृता ने यादगार तरीके से निभाया। ऐसी ही नकारात्मक भूमिका उन्होंने ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ (1992) में भी निभाई।

रवि शास्त्री से सैफ तक 
अमृता सिंह बोल्ड और खिलंदड़ स्वभाव की रही हैं। क्रिकेटर रवि शास्त्री के साथ उनके रोमांस के किस्से बॉलीवुड के गलियारों में खूब गूंजे, लेकिन क्रिकेटर और एक्टर का मेल नहीं हो सका। इसके बाद संन्यास को छोड़ ग्लैमर की दुनिया में आए विनोद खन्ना पर अमृता का दिल आ गया। कहा जाता है कि दोनों ने कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन भी दे दिया था, लेकिन ऐन वक्त कर कुछ कारणों से यह शादी नहीं हो सकी। आखिरकार सैफ अली खान को अमृता ने क्लीन बोल्ड कर दिया। उम्र के मामले में अनुभवी अमृता से सैफ 10 वर्ष से भी ज्यादा छोटे हैं। सैफ और अमृता की शादी ने सभी को चौंका दिया। बेमेल शादी के बारे में कहा गया कि ये ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगी। हुआ भी ऐसा। कुछ वर्ष अच्छे गुजरे और फिर सैफ-अमृता में अलगाव हो गया, लेकिन इस बीच उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी शामिल हो चुके थे। अमृता और सैफ ने अलग होने के कारणों को सार्वजनिक नहीं किया और गरिमामय खामोशी अब तक बनाए रखी है। अमृता से अलग होने के बाद सैफ अली, करीना के साथ रोमांस में व्यस्त हो गए और बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी अमृता ने संभाली।

कैमरे के सामने वापसी
अमृता ने अभिनय जगत में फिर वापसी की। जब उन्होंने यह निर्णय लिया तो पुराने दोस्त आगे आए। अमृता के पहले हीरो सनी देओल ने उन्हें अपनी होम प्रोडक्शन ’23 मार्च 1931 शहीद’ में काम दिया। महेश भट्ट जिनके साथ अमृता पहले कुछ फिल्में कर चुकी थीं उन्होंने ‘कलयुग’ में सशक्त भूमिका निभाने को दी। ‘काव्यांजलि’ नामक टीवी धारावाहिक भी उन्होंने किया। अमृता की वापसी पर चर्चाएं होने लगी कि उन्हें पैसों की सख्त जरूरत है इसलिए वे अभिनय की दुनिया में लौटी हैं। अमृता ने इन बातों को ज्यादा महत्व नहीं दिया। हाल ही में अमृता सिंह को यशराज फिल्म्स की ‘औरंगजेब’ में का करने का अवसर मिला है। साथ ही उनकी बेटी सारा खान को भी फिल्मों के ऑफर्स मिले हैं। अमृता चाहती है कि सारा भी उनकी तरह किसी बड़े बैनर से शुरुआत करें। अपने करियर के आरंभ में बड़बोली ‘मर्द सिंह’ इस वक्त खामोशी के साथ अपने बच्चों की परवरिश में व्यस्त हैं।

प्रमुख फिल्में 
बेताब (1983), साहेब (1985), मर्द (1985), चमेली की शादी (1986), नाम (1986), खुदगर्ज (1987), ठिकाना (1987), वारिस (1988), हथियार (1989), बंटवारा (1989), तूफान (1989), वीरू दादा (1990), अकेला (1991), राजू बन गया जेंटलमैन (1992), आईना (1993)

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